स्कूल भवन में खतरे की घंटी: बच्चों की जान पर भारी जर्जर दीवारें, शिक्षा विभाग बना मूकदर्शक - YES NEWS

स्कूल भवन में खतरे की घंटी: बच्चों की जान पर भारी जर्जर दीवारें, शिक्षा विभाग बना मूकदर्शक

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सिंगरौली/चितरंगी:

सिंगरौली जिले के चितरंगी तहसील के ग्राम खेड़ार स्थित शासकीय प्राथमिक शाला के जर्जर भवन की स्थिति बच्चों और शिक्षकों दोनों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। बारिश के मौसम में स्कूल की छत से पानी रिसता है, जिससे बच्चों को गीले फर्श पर बैठकर पढ़ाई करने पर मजबूर होना पड़ता है। यह हालत न केवल शिक्षा के अधिकार का मजाक उड़ाती है बल्कि छात्रों की सुरक्षा के साथ भी खिलवाड़ कर रही है।

भवन के निर्माण का साल और गिरती हालत

वर्ष 2005 में बना यह स्कूल भवन समय और मौसम की मार झेलते हुए पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। छत से पानी के रिसाव के कारण दीवारें और प्लास्टर टूट रहे हैं, और छड़ों से लटकी हुई स्थिति खतरनाक बन चुकी है। बारिश के दौरान दीवारों में गहरे दरारें दिखाई देती हैं, जिससे छत गिरने का खतरा बढ़ जाता है।

बच्चों की पढ़ाई और सुरक्षा पर असर

बारिश के कारण शिक्षकों के प्रयासों के बावजूद बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। यहां के प्रधानाध्यापक यज्ञ वन्त प्रसाद चतुर्वेदी ने बताया कि कई बार शिक्षा विभाग को स्थिति से अवगत कराया गया है, परंतु अब तक कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया गया है।

अधिकारियों की लापरवाही और अभिभावकों की नाराजगी

शिक्षा विभाग के अधिकारियों की इस घोर लापरवाही से बच्चों की जान जोखिम में है। स्थानीय ग्रामीण और अभिभावक स्थिति से बेहद नाराज हैं। प्लास्टर और छत गिरने की संभावित घटनाओं को लेकर डर व्याप्त है, लेकिन अधिकारियों की तरफ से कोई गंभीर कदम नहीं उठाए गए हैं। केवल खानापूर्ति के लिए निरीक्षण होता है और हर बार आश्वासन देकर मामले को टाल दिया जाता है।

कागजी आश्वासन और समस्या जस की तस

शिक्षा सत्र के प्रारंभ में अधिकारियों द्वारा कागजी खानापूर्ति होती है, लेकिन जर्जर भवन की मरम्मत का कार्य अभी तक शुरू नहीं हुआ है। यदि कोई बड़ा हादसा होता है तो इसके लिए सीधे तौर पर शिक्षा विभाग के अधिकारी जिम्मेदार होंगे।

शिक्षा का अधिकार बना दिखावा

इस गंभीर स्थिति में शिक्षा का अधिकार अधिनियम एक मूकदर्शक बनकर रह गया है। ऐसी परिस्थितियों में बच्चों की सुरक्षा की अनदेखी निंदनीय है, और अब शिक्षा विभाग को इस पर कठोर कदम उठाने की सख्त आवश्यकता है।

यहां पर शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों की अनदेखी बच्चों के जीवन के साथ बड़ा खिलवाड़ साबित हो सकती है।

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