4200 फीट की ऊंचाई पर चौरागढ़ शिव मंदिर, 325 सीढिय़ां चढ़कर मंदिर पहुंचते है भक्त।।।।

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छिंदवाड़ा से यस न्यूज़ प्रतिनिधि राजेश वर्मा की रिपोर्ट

4200 फीट की ऊंचाई पर चौरागढ़ शिव मंदिर, 325 सीढिय़ां चढ़कर मंदिर पहुंचते है भक्त।।।।
मध्यप्रदेश का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पचमढ़ी अपनी खूबसूरत वादियों के साथ धार्मिक महत्व के लिए भी विख्यात है। पचमढ़ी में साल में दो बड़े मेले लगते महाशिवरात्रि पर चौरागढ़ मंदिर और नागपंचमी पर नागद्वारी गुफा में विराजे भोले शंकर के दर्शन पूजन के लिए लाखो श्रद्धालु उपस्थिति दर्ज कराते है। भोला भक्त एक क्विंटल तक के बजनी त्रिशूल कांधे पर लेकर चौरागढ़ मंदिर पहुंचते है। 22 फरवरी से शुरू होने वाले महाशिवरात्रि मेले पर पचास हजार से अधिक भक्तों की उपस्थिति रहेगी। समुद्री तलहटी से करीब 4200 फीट की ऊंचाई पर चौरागढ़ शिव मंदिर स्थित है। 325 सीढिय़ां चढ़कर भक्त मंदिर तक पहुंचते है।
यह किवदंती—
महादेव मंदिर महंत गरीबदास महाराज के मुताविक माता पार्वती ने महाराष्ट्र में एक बार मैना गौंडनी का रूप धारण किया था। इस वजह से महाराष्ट्र के वाशिंदे माता को बहन और भोलेशंकर को बहनोई और भगवान गणेश को भांजा मानते हैं। यही वजह है कि महाशिवरात्रि मेले में महाराष्ट्र से अधिकाधिक संख्या में भक्त पहुंचते हैं। एक किवदंती यह भी प्रचलित है कि भस्मासुर से बचने भोले शंकर ने चौरागढ़ की पहाडिय़ों में शरण ली थी।

त्रिशूल का महत्व
महंत ने बताया कि चौरा बाबा ने वर्षों पहाड़ी पर तपस्या की। जिसके बाद भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि बाबा के नाम से यहां भोले जाने जाएंगे। तभी से पहाड़ी की चोटी का नाम बाबा के नाम पर चौरागढ़ रखा गया। इस दौरान भोलेनाथ अपना त्रिशूल चौरागढ़ में छोड़ गए थे। उस समय से यहां त्रिशुल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है।

दो जिले के अधिकारी है तैनात
महाशिवरात्रि मेले के लिए होशंगाबाद,छिंदबाड़ा कलेक्टर मॉनिटरिंग करते है। एसडीएम,तहसीलदार एवं अधीनस्थ स्टॉफ लाखो श्रद्धालुओं को सुरक्षित यात्रा मुहैया कराने दिन रात दुर्गम पहाड़ी मार्गो पर तैनात रहता है। 248 वाहनों को प्रशासन परमिट जारी करता है। इन वाहनों से पचमढ़ी से महादेव मंदिर तक करीब 12 किमी की यात्रा भक्त तय करते है फिर चौरागढ़ मंदिर की 325 सीढिय़ा और दुर्गम मार्ग पैदल ही तय किया जाता है।

साल भर पूजते है शिव का त्रिशूल
मेले में त्रिशूल लेकर मंदिर आने जाने वाले भक्तो के अनुसार भोले शंकर से मन्नत मांगने के बाद उनके नाम का त्रिशूल घर ले जाते है साल भर त्रिशूल का पूजन घर में करते है। महाशिवरात्रि पर त्रिशूल कांधे पर रखकर पैदल भोले शंकर के दरबार पहुंच कर त्रिशूल अर्पित करते है भक्तों की मन्नत भोले शंकर पूरी करते है।।।।।।।।।।
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