पोरसा। पत्रकार विनय की कलम से।
सोमवार की शाम पोरसा में उस वक्त अफरातफरी मच गई जब शासकीय अस्पताल परिसर में कुछ ही मिनटों में दमकल की गाड़ी मौके पर पहुंची। लोगों को यही लगा—”अस्पताल में आग लग गई!”
अचानक अस्पताल परिसर में लोगों की भीड़ उमड़ने लगी। मरीजों के परिजन, राहगीर और आस-पास के दुकानदार तक अस्पताल की ओर दौड़ पड़े। नज़ारा ऐसा था मानो किसी फिल्म का सीन चल रहा हो—चीख-पुकार, भगदड़, और तनावभरा माहौल। डॉक्टर और नर्सें मरीजों को स्ट्रेचर पर बाहर निकालते दिखे, वहीं दमकलकर्मी पाइप जोड़कर आग बुझाने की तैयारी में जुटे हुए थे।

चारों तरफ एक ही सवाल गूंज रहा था—”किसने लगाई आग?”
लेकिन कुछ देर बाद जो हकीकत सामने आई, उसने सभी को राहत की सांस दी—यह कोई असली हादसा नहीं, बल्कि एक “फायर मॉक ड्रिल” थी!
यह मॉक ड्रिल एसडीएम रामनिवास सिंह सिकरवार के निर्देशन में आयोजित की गई थी, जिसमें गर्मी के मौसम को देखते हुए अस्पताल कर्मचारियों को अग्निकांड की स्थिति से निपटने की ट्रेनिंग दी जा रही थी।
इस दौरान फायर ब्रिगेड को बुलाकर आग पर काबू पाने की पूरी प्रक्रिया का अभ्यास कराया गया। सभी जरूरी अग्निशमन यंत्रों की जांच की गई और अस्पताल स्टाफ को बताया गया कि इमरजेंसी के समय कैसे त्वरित और सटीक कार्रवाई करनी है।

मौके पर मौजूद प्रशासनिक और स्वास्थ्य अधिकारी:
एसडीएम रामनिवास सिंह सिकरवार, सीएमओ अवधेश सिंह सेंगर, बीएमओ डॉ. शैलेंद्र सिंह तोमर, तहसीलदार नवीन भारद्वाज, स्वच्छता निरीक्षक संतोष सिंह तोमर, एसओ उपेंद्र पाराशर, फायर ब्रिगेड चालक निर्भय सिंह, फायरमैन मुकेश सिंह, जितेंद्र सिंह, प्रशांत तिवारी, और राजकुमार माहौर समेत कई अधिकारी और कर्मचारी ड्रिल में शामिल रहे।
एसडीएम ने मौके पर कहा, “यह अभ्यास इसलिए जरूरी है ताकि किसी भी वास्तविक आपदा की स्थिति में हम सतर्क और तैयार रहें। आग कब और कहां लग जाए, ये कोई नहीं जानता।”

पोरसा अस्पताल की इस ‘झूठी आग’ ने सिखा दिया कि अगर तैयारी पक्की हो, तो असली संकट भी संभालना आसान हो सकता है। और हां—जब दमकल की गाड़ी पहुंच जाए, तो हलचल तो मचनी ही है!
